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वायु सुतः          प्राचीन श्री बड़ा हनुमान मंदिर, [लंगूरवाला], अमृतसर, पंजाब


डा तुषार गोडबोले

दुर्गियाना मंदिर, अमृतसर, पंजाब


पवित्र शहर अमृतसर

जब आप पंजाब में अमृतसर शहर के बारे में सोचतें हैं तो आपका सबसे पहले ध्यान महान हरमंदिर साहिब पर जाता है जोकि लोकप्रिय स्वर्ण मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। हरमंदिर साहिब सिखों का तीर्थ-स्थल है, जहाँ सिख तथा अन्य धर्मों के लोग भी दर्शन के लिये आते हैं। अमृतसर वस्तुतः एक अमृत का तलाब है इसका नाम अमृत सरोवर से निकला है जोकि स्वर्ण मंदिर के चारों तरफ एक पवित्र तलाब है। सिखों के चौथे गुरु श्री राम दास जी ने अमृतसर शहर स्थापित किया था।

दुर्गियाना मंदिर, अमृतसर, पंजाब स्वर्ण मंदिर के पास ही श्री दुर्गा माँ का मंदिर बना हुआ है जोकि दुर्गीयाना मंदिर के नाम से जाना जाता है। दुर्गींयाना सरोवर - महान पवित्र तलाब की स्थापना ४ जनवरी १९२१ रखी गई थी। उसी साल फरवरी में वसंत के दौरान श्री दुर्गा माँ के मंदिर का निर्माण शुरू हुआ था। तथा उसी वर्ष अप्रैल में मुर्तियों का अधिष्ठापन किया गया था। तब से यह उत्तर भारत में हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण धार्मिक तीर्थ स्थल बन गया है। इस मंदिर परिसर के उत्तर पश्चिमी कोने पर भगवान हनुमान का भी एक मंदिर है।

मंदिर का नाम श्री बड़ा हनुमान मंदिर रखा गया, और इसके अतिरिक्त यह अधिक लोकप्रिय नाम लंगूरवाला हनुमान मंदिर से भी जाना जाता है।

लंगूरवाला मेला

पश्चिम बंगाल में 'दुर्गा पूजा', गुजरात में 'डांडिया' मनातें हैं, उसी तरह अमृतसर में "लंगूरवाला मेला" मनातें हैं। बहुत नवदंपती एक नर बच्चा पाने के लिए भगवान हनुमान का आशीर्वाद लेतें हैं। जब उनकी मनोकामनापूर्ण हो जाती है तो वो इस मंदिर में नवरात्रों के दौरान आते हैं और भगवान को उनके आशीर्वाद का धन्यवाद अदा करते हैं। नवदंपती नर बच्चा पाने के लिए बड़ा हनुमान मंदिर परिसर में बरगद के पेड़ पर एक धागा भी बांधतें हैं।

जब उनकी मनोकामनापूर्ण हो जाती है तो वो इस मंदिर में नवरात्रों के दौरान बच्चे के साथ आते हैं। इन नौ दिनों के दौरान वे उपवास रखतें हैं, तथा फर्श पर सोतें हैं। वो केवल कच्ची सब्जियों और फलों का एक समय भोजन करतें हैं। एवं रामायण का सस्वर पाठ विशेष रूप से सुंदर कांड का नौ दिन चलता है। मेले के दौरान नर बच्चों को सोने या चांदी की परत के साथ सजी चमकदार लाल पोशाकें लंगूर के रूप में पहनाई जाती हैं। तथा उनके चेहरे मुल्तानी मिट्टी से रंग दिये जाते हैं जिससे वो लंगूर की तरह दिखें। और एक कृत्रिम गदा के साथ एक बड़ी पूंछ लगाकर लंगूर का भेष पूरा किया जाता है। नवरात्रों के समापन पर, बरगद के पेड़ के पास ये लंगूर अपनी लंगूर की पोशाकें उतार देतें हैं जहाँ पर उनके माता-पिता ने धागा बांधा था। अब लंगूर की माता इस प्राचीन पेड़ से धागा खोल देती हैं। क्योंकि भगवान बड़ा हनुमान ने उनकी मनोकामना पूर्ण की।

इस प्रचीन बड़ा हनुमान मंदिर में यह वार्षिकोत्सव पहले नवरात्रे से शुरू होता है। इस त्योहार के दौरान लोग दूर जगहों से, यहां तक कि लोग विदेशों से भी इस मंदिर में आते हैं।

किंवदंती

प्राचीन श्री बड़ा हनुमान मंदिर, [लंगूरवाला], अमृतसर, पंजाब अश्वमेध यज्ञ आमतौर पर सम्राटों द्वारा किया जाता था इसमें सम्राटों द्वारा एक घोड़े [अश्वम] को सजाकर, पुजा-अर्चना के बाद छोड़ दिया जाता था। और सैना खुले घोड़े के पीछे-पीछे चलती थी। जहाँ कहीं घोड़ा जाता वो इलाका सम्राटों का हो जाता था, अगर घोड़े को कोई चुनौती नहीं देता था। इसलिये श्री राम ने, अश्वमेध घोड़े को छोड़ा, इलाकों का दावा करने के लिये, जबकि उनकी पत्नी श्री सीता निर्वासन में रह रही थीं।

श्री सीता जोकि श्री वाल्मीकि की देखरेख में थीं, ने जुड़वां बेटों अर्थात् लव और कुश को जन्म दिया था। यह कहा जाता है कि लव और कुश ने अश्वमेध घोड़े को चुनौती दी, जबकि उनको नहीं पता था कि यह अन्य कोई नहीं, बल्कि उनके पिता भगवान श्री राम द्वारा ही निर्धारित किया गया था। एक बार चुनौती दी तो युद्ध आरम्भ हो गया, लव और कुश ने श्री राम के भाईयों को युद्ध में पराजित किया । श्री राम के विनम्र भक्त पराक्रमी श्री हनुमानजी लव और कुश का सामना करने के लिए आये थे। श्री राम के पुत्रों ने श्री हनुमान को भी पकड़ कर बरगद के पेड़ से बांध दिया था। कहा जाता है कि यह वही बरगद का पेड़ है जहाँ नवदंपती लड़का प्राप्ती के लिये धागा बांधते हैं, उसी बरगद के पेड़ से लव और कुश ने श्री हनुमान को बांधा था। यह हनुमान मंदिर और पेड़ बहुत प्राचीन हैं।

अमृतसर के पास ही एक स्थान का नाम वाल्मिकी आश्रम है। यह कहा जाता है कि लाहौर और कासुर के नाम जोकि अब पाकिस्तान में हैं, लव और कुश के नाम पर ही रखे गये थे।

बड़ा हनुमान

यहाँ हनुमान गढ़ी, अयोध्या के तरह ही श्री हनुमान बैठे मुद्रा में देखाई देतें हैं। इस मंदिर में श्री हनुमान शानदार और आकार में विशाल हैं। भगवान लेटे हुई मुद्रा में बैठे हुये, जैसे उनकी मनोदशा आराम करने की हो। आखिर उन्होंने श्रीराम और श्री सीता (लंका से) को मिलाया था। अब यहाँ इस क्षैत्र में भी उन्होंने श्रीराम को उनके बेटों - लव और कुश से मिलवाया था। आराम करने के लिए श्री हनुमान के पास बहुत सारे कारण हैं। और सभी चिंताओं से छुटकारा पाने के लिए तथा आराम पाने के लिए आईये हम उनकी पुजा-अर्चना करें ।

 

 

अनुभव
इस प्राचीन मंदिर में भगवान बड़े हनुमान के दर्शन करके, आपको सभी चिंताओं से मुक्ति मिलेगी और आपका मन खुशियों से भर जायेगा।
प्रकाशन [अप्रैल 2015]

 

 

~ सियावर रामचन्द्र की जय । पवनसुत हनुमान की जय । ~

॥ तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै ॥

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