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वायु सुतः          मर्कट बाबा श्री हनुमान मन्दिर, यमुना बाजार, दिल्ली


जी के कोशिक

प्राक्कथन

मैं लंबे समय बाद दिल्ली शहर आया था और यहाँ मेरे लिए सब कुछ नया था। दिल्ली में रहते हुए, मैंने हरिद्वार जाने की योजना बनाई और इसलिए मैंने कश्मीरी गेट अतंर राज्य बस अड्डा जाने के लिए एक नगरीय बस ले ली। बस यमुना नदी के किनारे रिंग रोड से जा रही थी, और मैं फिरोज शाह कोटला, गांधी स्मारक, लाल किला इत्यादि पुराने स्मारकों को देखकर आनंदित हो रहा था। लाल किला गुज़र जाने के बाद, कंडक्टर यात्रियों को हनुमान सेतु पर बस सॆ नीचे उतरनॆ के लिए बुला रहा था। मुझे आश्चर्य हो रहा था और उम्मीद भी न थी कि यमुना नदी के ऊपर पुल को हनुमान सेतु कहते होंगे। (भगवान का धन्य़वाद, हनुमान सेतु नाम, राम सेतु विवाद के बाद भी नहीं बदला, जहां श्री राम नाम पर सवाल उठाये गये थे) कुछ सेकंड के बाद बस एक पुल के उपर से गुजरी , और मुझे बताया गया इस पुल का नाम हनुमान सेतु है जोकि प्रसिद्ध हनुमान मंदिर के पास होने के कारण पड़ा। ओह क्या राहत, मैं दिल्ली के निशान से एक को नाम 'हनुमान सेतु' दिया था, जो मंदिर की यात्रा करने का फैसला किया। लौटने पर मैंने निगमबोध घाट के पास यमुना नदी के तट पर प्रसिद्ध हनुमान मंदिर के दर्शन किये।

देवताओं का शहर - इन्द्रप्रस्थ

इंद्रप्रस्थ - वर्तमान दिल्ली देवताओं के शहर के रूप में जाना जाता है जोकि मृत्यु के देवता यम की बहन यमुना नदी के तट पर पांडवों ने बसाया था। इन्द्रप्रस्थ शहर भी दो चचेरे भाईयों कौरवों और पांड्वों के बीच विवाद का एक कारण था। अब इन्द्रप्रस्थ के कुछ अवशेष नहीं हैं, पर अभी हाल में ही, पुराने किले की खुदाई में सुंदर भूरे मिट्टी के बर्तन मिलें हैं जोकि इन्द्रप्रस्थ के अस्तितव: की पुष्टि कर सकतें हैं।

हालांकि. कहने के लिए प्रथागत है कि यहाँ आठ दिल्ली हैं। पर वर्तमान में, पुरानी दिल्ली और नई दिल्ली के नाम से केवल दो ही जानी जाती हैं। जबकि पुरानी दिल्ली शाहजहां द्वारा निर्मित शाहजहाँनाबाद और राजसी फोर्ट के रूप में लाल किला बनवाया था। और नई दिल्ली तथा दिल के रूप में मौजूदा राष्ट्रपति भवन का निर्माण अंग्रेजों ने करवाया था। लेकिन इस जगह का, महाभारत या उससे पहले वैदिक काल से अस्तितव है।

शाहजहाँनाबाद उर्फ पुरानी दिल्ली

शाहजहाँनाबाद, 17 वीं सदी में शाहजहाँ ने सातवीं दिल्ली का निर्माण 1649 में पूरा करवाया । इसे, ऊंची दीवारों से घिरा एक विशाल किले की तरह, जोकि 14 उच्च धनुषाकार द्वारों और 16 खिड़कियों के साथ सभी तरफों से मजबूत मलबे से बनाया गया था।

पुराना शहर शाहजहाँनाबाद सुनियोजित ढ़ंग से बनवाया गया था। और उसमें चौदह धनुषाकार द्वार थे, जिनके माध्यम से शहर में प्रवेश किया जा सकता था। शहर के अधिकांश द्वारों का नाम दिशाओं और स्थानों पर आधारित था। उदाहरणतय उतर में कशमीरी गेट, पश्चिम में दिल्ली गेट और उतर-पश्चिम में अजमेरी गेट इत्यादि। लाल किला शाहजहाँनाबाद का आधार या शहर का केंद्रीय विषय था। यमुना नदी लाल किले की पूर्वी सीमा थी, और पुराने शहर दिल्ली की भी।

निगमबोध गेट और निगमबोध घाट

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि वहाँ सलीमगढ़ नाम का छोटा सा किला यमुना नदी के मुख्य धारा के बीच गठित द्वीप पर स्थित था। यह शहर का पूर्वोत्तर कोना था। इस स्थान पर दवार ही निगमबोध गेट से जाना जाता है। और दवार के नामकरण की प्रथा के अनुसार, यहाँ से निगमबोध की ओर जाते थे इसीलिये इस दवार निगमबोध गेट का नाम दिया गया था महाभारत और हिंदू अवधि के समय से यमुना नदी के साथ भूमि का हिस्सा निगमबोध कहलाता है। मूल घाट (जहां से नदी के किनारे लोग स्नान कर सकते हैं) गेट की ओर से सलीमगढ़ किले के पास तक बढ़ा दिया।

निगमबोध नाम

ये जानना दिलचस्प बात है कि इस जगह का नाम निगमबोध घाट कैसे पड़ा। किंवदंतियों के अनुसार एक बार ब्रह्मा अपनी याददाश्त खो बैठे तथा हस्तलिपी को भी। बुद्धिमानों के साथ परामर्श पर ब्रह्मा को पता लगा कि उन्हें इंद्रप्रस्थ में यमुना नदी में स्नान करने से सब ठीक हो जायेगा। तद्नुसार उन्होंने यमुना नदी में डुबकी लगाई और अपनी खोई स्मृति वापस पाई तथा उन्हें अपनी पवित्र पुस्तकें भी मिल गईं। नाम निगमबोध में - निगम वेद को और बोध ज्ञान को कहते हैं। ब्रह्मा को यहाँ अपनी हस्तलिपी और ज्ञान प्राप्त हुआ। तभी से इसे निगमबोध नाम से जाना जाने लगा।

यमुना बाजार

Red fort, Saleemgarh, Nigamboth Ghat, Delhi, लाल किला, सलीमगढ़, निगमबोध घाट, दिल्ली वर्तमान में भी सलीमगढ़ के अवशेष देखे जा सकते हैं। एक पुरानी संरचना सलीमगढ़ को रेजिमेंटल जरूरतों के लिए अंग्रेजों ने संशोधित और निर्माण किया। अभी भी रिंग रोड और बेला रोड द्वारा गठित द्वीप में, रिंग रोड पर मेहराब सलीमगढ़ की याद दिलाता है। लाल किला और सलीमगढ़ जोड़ने वाला पुल रिंग रोड पर देखा जाता है। यमुना नदी ने अपना बहाव बदल दिया था और पूर्व की ओर चली गई थी. और इस तरह निगमबोध घाट का भी स्थानांतरण पूर्व की ओर हुआ। निगमबोध घाट अब श्मशान भूमि के लिए जाना जाता है। कम प्रचलित नील छतरी मंदिर, जो भगवान शिव को समर्पित है, पांडवों के ज्येष्ठ युधिष्ठिर ने बनावाया था। यहाँ अब रिंग रोड है, जहाँ कभी यमुना नदी बहती थी। आजकल रिंग रोड के एक तरफ यमुना बाजार है, जोकि यमुना नदी के बहाव बदलने से पहले, निगमबोध घाट का ही एक हिस्सा था।

अंजनेया उर्फ हनुमान मंदिर

एक प्राचीन अंजनेया मंदिर यमुना बाजार में हनुमान मंदिर के नाम से जाना जाता है। मुगल काल में मंदिर मर्कट बाबा जी द्वारा पुर्नस्थापित हुआ। अब यह मंदिर यमुना बाजार हनुमान मंदिर - मर्कट बाबा जी वाला के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ कई वृतान्त श्री हनुमान मंदिर के बारे में वर्णनन करतें हैं, उन किंवदंतियों का यहाँ उल्लेख करने से पहले, आईऐ हम मंदिर के दर्शन कर लें।मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व की ओर है, मंदिर में प्रवेश करते ही एक बड़ी खुली जगह है, वहाँ बहुत से छोटे-छोटे मंड्प हैं। जिनका अलग-अलग समय पर विभिन्न दानदाताओं ने निर्माण करवाया था। इन मंड्पों में हनुमान भक्तगण समुहों में बैठतें हैं और हनुमान जी का गुणगान करते हैं। उनमें से अधिकांश श्री हनुमान चालीसा या श्री हनुमान बाहुक मंत्रोचारण करते हैं। इन दिनों मंड्पों का जीर्णोद्धार हो रहा है। मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही, मुख्य मंदिर बाईं ओर है। मुख्य मंदिर में भगवान के दर्शनों के लिये लंबी लाईन लगती है।

भगवान अंजनेया उर्फ हनुमान

मुख्य मंदिर पश्चिम दिशा के सामने और भगवान हनुमान भी पश्चिम दिशा की ओर मुख किये हुए हैं। प्रभु की मुख्य मूर्ति पन्द्रह फीट गहरी स्थापित है। ऐसा कहा जाता है कि तब से अब तक शहर के विकास के साथ रिंग रोड के आस-पास, जमीन के स्तर में इतना भराव आ चुका है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान हनुमान की मूर्ति मूल रूप से वहीं पर है, जहां स्थापित किया गया था। मूर्ति चारों ओर से तीन-चार फीट है और पत्थर पर उभरी हुई है, तथा ऊपर से सिदुंर और घी लगा दिया गया है। भगवान के आस-पास पानी है, और देखने से ऐसा लगता है कि भगवान पानी में खड़े हैं। भगवान दाएँ हाथ में संजीवनी पर्वत लिये हुए और बाँए हाथ से भूमि को स्पर्श करते हुए दिखाई दे रहें हैं।

क्षेत्र किंवदंतीयाँ

Markata Baba Hanuman Mandir, Yamuna Bazzar, Delhi, मर्कट बाबा श्री हनुमान मंदिर, यमुना बाजार, दिल्ली मंदिर कितना पुराना है यह बताना मुशकिल है। पहली किंवदंती अनुसार सतयुग और त्रेतायुग के मध्य में, जब ब्रह्मा अपनी याददाश्त और वेदलिपीयाँ खो बैठे थे, यह मंदिर तदकालीन है। बुद्धिमानों और देवताओं के साथ परामर्श उपरांत ब्रह्मा को पता चला कि उन्हें इंद्रप्रस्थ में यमुना नदी में स्नान करने से सब ठीक हो जायेगा। तद्नुसार उन्होंने इस जग़ह यमुना नदी में डुबकी लगाई और अपनी खोई स्मृति वापस पाई तथा उन्हें खोई हुई पवित्र लिपियाँ भी प्राप्त हो गईं। इसीलिये यह यमुना नदी का तट निगमबोध घाट कहलाता है। हनुमान जी ने यहाँ सभी वेदों का अध्ययन किया और सुर्य भगवान से अन्य़ कलाएँ सीखी थीं। यह सब उन्होंने अपने इष्ट के सामने पीछे की ओर जाते हुए, सुर्य भगवान की दिनचर्या में, बिना विध्न डाले किया था। ऐसा करते हुए हनुमान जी को श्री ब्रह्मा द्वारा वेद्लिपिओं को खो देने का पता चल गया। उनकी कोई लिपि निगमबोध घाट पर तो नहीं छूटी, यह पता करने के लिए भगवान यहाँ आये थे, और लिपि ढूढ रहे थे। इसलिए इस क्षेत्र के हनुमान जी को यमुना तट पर खोजने की मुद्रा में देखा जाता है।

दुसरी किंवदंती के अनुसार ये रामायण-कालीन है। श्री राम के राजतिलक के बाद, अयोध्या में खुशहाली थी, तदुपरान्त श्री राम ने श्री सीता देवी को निर्वासन में भेजा (पूर्ण कथा के लिये हमारा लिंक Aliganj Lucknow पढ़े) एक नागरिक के द्वारा देवी के चरित्र पर शक के कारण। निर्वासन काल में एक दिन श्री राम और हनुमान जी शिकार के लिये यमुना नदी के किनारे आये, तभी वे इस पवित्र निगमबोध घाट पर भी आये तथा उन्होंने नदी में पवित्र डुबकी लगाई और ध्यान में बैठ गये। थोड़ी देर बाद हनुमानजी श्री राम के लिए कुछ फल लेने चले गए। श्री राम फल खाकर तरोताजा हो गये। श्री हनुमान जी ने फलों के बचे हुए टुकड़ो को, राम का प्रसाद रूप में ग्रहण किया।

यहाँ कई किंवदंतियाँ रूपों के बीच केवल दो किंवदंतियाँ दी हैं।

मंदिर तथा मंदिर के आस-पास

मंदिर का रख-रखाव साफ सुथरा है। मंदिर के पीछे एक अच्छा उद्यान हनुमान वाटिका के नाम से जाना जाता है, और इसे तुलसीदास रचित रामचरितमानस, वाल्मिकी रामायण और हनुमान चालीसा पर प्रवचन के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

 

 

अनुभव
यमुना बाजार निगमबोध घाट मंदिर के श्री हनुमान जी अपने भक्तों को विश्व का सामना करने के लिये ज्ञान, अनुशासन और साहस प्रदान करतें हैं।
रामा नवमी उद्घाटन विशेष|
प्रकाशन [जून 2014]

 

 

~ सियावर रामचन्द्र की जय । पवनसुत हनुमान की जय । ~

॥ तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै ॥

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